हरी के वात्सल्य में

वात्सल्य का अर्थ और महत्व

वात्सल्य शब्द का तात्पर्य एक ऐसे प्रेम और स्नेह से है जो माता-पिता और बच्चों के बीच होता है। यह प्रेम न केवल गहरा और निस्वार्थ होता है, बल्कि इसमें सुरक्षा और देखभाल का मर्म भी समाहित होता है। भगवान हरी, जिन्हें विष्णु भी कहा जाता है, के संदर्भ में वात्सल्य का महत्व विशेष रूप से उल्लेखनीय है। उनके भक्तों के प्रति उनका प्रेम और स्नेह माता-पिता के समान माना जाता है, जो उन्हें वात्सल्य का प्रतीक बनाता है।

पौराणिक कथाओं और धार्मिक ग्रंथों में भगवान हरी के वात्सल्य का वर्णन अनेक बार किया गया है। उदाहरण के लिए, प्रह्लाद की कहानी में भगवान विष्णु ने नरसिंह अवतार लेकर अपने भक्त प्रह्लाद की रक्षा की थी। प्रह्लाद के प्रति उनका वात्सल्य इतना प्रबल था कि उन्होंने स्वयं को खतरे में डालकर उसे हर संकट से बचाया। इसी प्रकार, रामायण में भी श्रीराम ने अपने भक्तों के प्रति असीम वात्सल्य का प्रदर्शन किया है।

भगवान हरी का वात्सल्य उनके भक्तों को न केवल प्रेम और स्नेह की भावना से ओतप्रोत करता है, बल्कि उन्हें सुरक्षा और संबल भी प्रदान करता है। यह वात्सल्य भक्तों को यह विश्वास दिलाता है कि वे भगवान की छत्रछाया में सुरक्षित हैं। भगवान हरी के इस वात्सल्य भाव के कारण ही उन्हें माता-पिता के समान माना जाता है, जो अपने बच्चों को हर कठिनाई से बचाने के लिए तत्पर रहते हैं।

वात्सल्य का यह महत्व केवल व्यक्तिगत स्तर पर ही नहीं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक स्तर पर भी दिखाई पड़ता है। यह लोगों को एक-दूसरे के प्रति प्रेम और स्नेह की भावना से जोड़ता है, जिससे समाज में आपसी सौहार्द और सामंजस्य बढ़ता है। भगवान हरी के वात्सल्य का यह पहलू हमें सिखाता है कि सच्चा प्रेम और स्नेह निस्वार्थ होता है, और इसमें सुरक्षा और देखभाल का भाव भी निहित होता है।

भगवान हरी के वात्सल्य के उदाहरण

भगवान हरी के वात्सल्य का वर्णन करते समय, सबसे पहले श्रीकृष्ण की बाललीलाओं का स्मरण होता है। श्रीकृष्ण ने अपने बाल रूप में अपनी माता यशोदा के साथ जो वात्सल्य प्रदर्शित किया, वह अद्वितीय है। एक प्रसिद्ध कथा में, यशोदा ने जब श्रीकृष्ण को मक्खन चुराते हुए पकड़ा, तो उन्होंने मां को अपनी बालसुलभ चपलता और मासूमियत से मोह लिया। यशोदा के लिए श्रीकृष्ण केवल भगवान नहीं, बल्कि उनके नटखट लल्ला थे, जिनके लिए उनका वात्सल्य अनन्त था।

वात्सल्य का यह गुण भगवान विष्णु के अन्य अवतारों में भी दिखाई देता है। प्रह्लाद और नरसिंह अवतार की कहानी एक प्रमुख उदाहरण है। प्रह्लाद, जिनके पिता हिरण्यकशिपु भगवान विष्णु के कट्टर विरोधी थे, ने विष्णु भक्ति का मार्ग चुना। जब हिरण्यकशिपु ने प्रह्लाद को मारने के लिए अनेक प्रयास किए, भगवान विष्णु ने नरसिंह अवतार धारण कर प्रह्लाद की रक्षा की। यह घटना दर्शाती है कि भगवान विष्णु अपने भक्तों के प्रति कितने वात्सल्यमय और दयालु हैं।

इसी प्रकार से भगवान राम के उदाहरण भी उल्लेखनीय हैं। अपने वनवास के दौरान भगवान राम ने कई बार अपने भक्तों के प्रति अवर्णनीय प्रेम और स्नेह प्रदर्शित किया। शबरी, जो एक वनवासी महिला थी, ने अपने प्रेम और भक्ति से भगवान राम को मोहित किया। भगवान राम ने शबरी के जूठे बेर खाकर उसकी भक्ति को स्वीकार किया।

भगवान हरी का वात्सल्य उनके भक्तों को कठिन समय में सहारा और मार्गदर्शन प्रदान करता है। चाहे वह माता यशोदा के साथ श्रीकृष्ण का प्यार हो, प्रह्लाद की रक्षा के लिए नरसिंह अवतार का प्रकट होना हो, या भगवान राम का अपने भक्तों के प्रति प्रेम हो, इन सभी उदाहरणों में भगवान हरी का वात्सल्य स्पष्ट रूप से झलकता है। यह वात्सल्य उनके भक्तों के लिए एक निरंतर प्रेरणा स्रोत बना रहता है, जिससे वे अपने जीवन में आने वाली चुनौतियों का सामना करने में सक्षम होते हैं।

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